लो जी दीपों का पर्व दिवाली एक बार फिर दस्तक दे रहा है. चारों और दीवाली की खुमारी शुरू हो गयी है. बाजार सज गए हैं. कहीं चाईनीज लाइटें हैं, जो बेवफा प्रेमिका की तरह कब साथ छोड़ दे, कह नही सकते. कहीं लजीज और तरह-तरह की मिठाइयाँ सजी हैं, जिनमे खाद्य पदार्थ कम, डिटर्जेंट और यूरिया की मात्रा ज्यादा है. वो तो सलाम देश के कॉमन मैन के शानदार हाजमे को, जो बेचारा सब कुछ पचा लेता है और उलटी तलक नहीं करता. खैर दिवाली जैसे पावन मौके पर बन्दा क्यों किसी की चुगली करे . मैं तो सभी देशवासियों को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहता हूँ. भगवान् करे इस दिवाली लक्ष्मी जी वीआईपी भाइयों की गोद से निकलकर आप सभी आम आदमियों के आँगन में प्रकट हो. साथ ही इस दिवाली आपको प्याज, टमाटर और दाल जैसी दुर्लभ चीजें खाने का मौका मिले…और हाँ ईश्वर आपको बत्तीस रुपये जैसी भारी-भरकम राशि एक दिन में खर्चने और इस राशि से गुजारा करने की हिम्मत और साहस प्रदान करे. तो भाई लोगों हैप्पी दिवाली….वैसे दीवाली के मौके पर मैं हमारे देश के उन तमाम ज्ञात और अज्ञात सांसदों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, पूर्व मंत्रियों और कोर्पोरेट जगत के बड़े-बड़े अधिकारियों को विशेष रूप से दीवाली मुबारक कहना चाहता हूँ, जो भ्रष्टाचार के आरोप में जेलों में बंद हैं और जिनकी दीवाली अबकी बार उनके आलिशान बंगलों की बजाय जेल में मनेगी. मेरी इन लोगों से पूरी हमदर्दी है साहब. मैं समझ सकता हूँ जी, इन लोगों के दुःख को. एक वो भी दीवाली थी… जब चारों और महंगे गिफ्टों का अम्बार लगा रहता था, चमचे और कड्छे टाइप कार्यकर्ता उन्हें दीवाली की बधाइयाँ दिया करते थे. उस समय उनकी छवि ऐसी होती थी जैसी भक्तों के बीच भगवान् की होती है. दीवाली के दिन लोग और शुभचिंतक उनसे मिलकर और उन्हें बधाई देकर ऐसे धन्य हुआ करते थे जैसे राहुल बाबा को अपने बीच पाकर अपने कांग्रेसी बंधू हुआ करते हैं. कार्यकर्ताओं को दीवाली के दिन लक्ष्मी की मूर्ति के दर्शन चाहे हो या ना हो, अपने प्रिय नेता के दर्शन भर हो जाए, तो समझो उनकी तो हो गयी दिवाली..एक ये भी दीवाली है…जब चारों और केवल जेल की चारदीवारी है, बैरक है, खाकी वर्दीधारी लोग हैं, तुन्दियाये हुए जेलर हैं, एक- दो जेल के हमसफर हैं. सत्यानाश जाये भ्रष्टाचार विरोधी लहर जगाने वाले समाज कंटकों का..भगवान् इन पर चप्पल बरसाए..जिन्होंने मुहीमें चलाकर महामहिमों को जेल की हवा खिला दी . कसम से जब से जेल में गये हैं..कोई स्साला पास ही नहीं फटकता..क्लोज रिलेटिव्स ने भी डिस्टेंस रखना शुरू कर दिया है. पार्टी के नेता भी मीडिया में बाईट देकर स्पष्ट कर रहे है कि मेरा उनसे कुछ लेना-देना नहीं. शुरूआती दिनों में तो कुछ कार्यकर्ता बंधू हाल-चाल पूछने आ जाते थे, लेकिन अब तो अपने भी पराये हो गए हैं. सही लिख गए हैं शैलेन्द्र जी कि-दोस्त दोस्त ना रहा…प्यार प्यार ना रहा. इधर जेल में बाहर की तो हवा ही नहीं लगती. वो तो भगवान् का शुक्र है जो बीच-बीच में रक्तचाप और दिल की धड़कन तेज-मंथर होती रहती है, जिसकी वजह से बाहर होस्पिटल में रहने और अपनों से मिलने का सुख नसीब हो जाता है…वरना तो हाल बुरा ही है.
तो साहब इस बार तो किसी तरह दुःख-सुख पाकर आप लोग जेल में दिवाली मना लो, मैं परमपिता से कामना करूंगा की आपकी नेक्स्ट दिवाली घर में ही सपरिवार मने, सो अगेन हैप्पी दिवाली….
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