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अथ श्री बुद्धिजीवी कथा (व्यंग्य)

पराग
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टीवी पर एक ताजा समसामयिक विषय पर गर्मागर्म बहस हो रही थी. चेनलों पर अक्सर दिखाई देने वाले उबाऊ चेहरे अपने अजीबोगरीब तर्कों से या यूं कहें कुतर्कों से अपनी-अपनी विद्वता साबित करने में लगे थे. सभी में होड़ लगी थी,अपने-आप को श्रेष्ठ साबित करने की.
तभी मेरा छ साल का बेटा मेरे पास आया और बोला-” पापा टीवी पर रोज आने वाले और तेज आवाज में बोलने वाले अंकल-आंटी लोग कौन हैं?”
“ये बड़े महान लोग हैं बेटा, संसदीय भाषा में इन्हें ‘बुद्धिजीवी’ कहा जाता है”-मैंने समझाया.
“बुद्धिजीवी क्या होता है?” बाल मन ने फिर प्रश्न किया.
“बुद्धिजीवी एक खास वर्ग होता है, बेटा. देखने में यह आम इंसानों जैसे होते हैं. लेकिन ये इंसानों से उच्च क्वालिटी के होते हैं. इन्हें हर चीज में महारत हासिल होती है. कश्मीर मुद्दे से लेकर तेलंगाना मुद्दे तक, राजनीती से लेकर कूटनीति तक, आईपीएल से लेकर बीपीएल तक सभी सब्जेक्ट पर ये बोलना और लिखना जानते हैं. सभी चेनलों के प्राइम टाइम पर इनका वैसे ही कब्ज़ा होता है, जैसे सरकारी तन्त्र पर आजकल भ्रष्टाचार का कब्जा है. समाज या आम आदमी के साथ मिलकर चलने में ये अपनी तौहीन समझते हैं. दुनिया वाले अगर दिन को दिन कहें, तो ये लोग दिन को रात साबित करने की पूरी कोशिश करते हैं. यानी जिस प्रकार सिंह जंगल में अकेला चलता है, उसी प्रकार बुद्धिजीवी भी सबसे अलग और अकेला चलना पसंद करता है..”
“बुद्धिजीवियों के बारे में और बताओ ना पापा…” बच्चे को ‘बुद्धिजीवी गाथा’ सुनकर ठीक वैसा ही मजा आ रहा था, जैसा उसे “टॉम एंड जैरी” का कार्टून देखने में आता है.
“और सुनो बेटा…बुद्धिजीवी अपने को परमज्ञानी और त्रिकालदर्शी समझता है. वह सार्वभौमिक और सर्वत्र होता है. उसे ऊँचा बोलने और गज भर की जुबान निकालने की आदत होती है, जब वह बोलता है तो ऐसे लगता है जैसे किसी से लड़ रहा हो. एक बुद्धिजीवी को अपनी-अपनी हांकने और दूसरों की बातें ना सुनने की बीमारी होती है.कोई उसकी बात से इत्तेफाक ना रखे तो वो उसे काटने को दौड़ता है…”
“इसका मतलब पापा, बुद्धिजीवी कुछ-कुछ मम्मी जैसा होता है. जैसे मम्मी भी केवल अपनी-अपनी ही हांकती है. आपको सुनाती रहती है, लेकिन आपकी सुनती नहीं…क्यों ठीक कहा ना पापा…”
मैं बेटे की “बुद्धिजीविता” भरी बात सुनकर मुस्कुराये बगैर नही रह सका.

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