प्रोफेसर साहब बड़े चिंतित हैं. चेहरे पर पसीना है और माथे पर बल. हर साल इन दिनों उनको चिंतित होना पड़ता है. करें भी क्या, कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष जो ठहरे. वैसे उनके विभाग के पास स्टुडेंट कम हैं. अब स्टुडेंट भी बेचारे क्या करें. आज के युग में किसी जॉब ओरियेंटीड कोर्स में दाखिला लेना उनकी मजबूरी है. अब हिंदी तो बेचारी आजकल खुद एक अदद जॉब के लिए तरस रही है सो हिंदी के कोर्स किसी स्टुडेंट को जॉब क्या दिलवा पायेंगे. लिहाजा अधिकांश समय वो खाली ही रहते हैं, पूरा साल वो विभागाध्यक्ष की रिवोल्विंग चेयर पर बैठकर घर के कामों और नून, तेल लकड़ी की चिंता में रहते हैं, लेकिन इन दिनों उन्हें और चिंताएं छोड़कर सिर्फ एक ही चिंता करनी पडती है-हिंदी की चिंता. हिंदी दिवस पर होने वाले सेमिनार “हिंदी की दशा और दिशा” की पूरी तैयारी का जिम्मा उन पर ही रहता है. प्रोग्राम ठीक से निपट जाए और आये हुए आगन्तुक खुश होकर जाएँ, इसके लिए इन दिनों वो खासी मेहनत करते हैं. इस बार तो तैयारी वैसे ही विशेष है क्योंकि इस बार चीफ गेस्ट के रूप में हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार जाधव जी आ रहे हैं. जाधव जी हिंदी के ठेकेदार हैं, हिंदी भाषा के नाम पर बने कई मठों के प्रमुख महंत हैं और पिछले 25 सालों से हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिका के चिरंजीवी सम्पादक हैं. अब इतने भयंकर किस्म के साहित्यकार सेमिनार में आते हैं तो आयोजकों की हवा तो ढीली रहती है. इसलिए तैयारी ज्यादा जोरों पर है. प्रोफेसर साहब ने अपने अंडर हिंदी में पीएचडी करने वाले सभी विद्यार्थियों को काम पर लगा रखा है. जैसे पार्टियाँ विश्वासमत के दौरान अपने सांसदों को अनुपस्थित न रहने के लिए व्हिप जारी करती है, वैसे ही प्रोफेसर महोदय ने अपने स्टुडेंट्स को प्रोग्राम के ना निपटने तक छुट्टी पर न रहने का व्हिप जारी किया हुआ है. आखिरकार सेमिनार का दिन भी आ ही गया है. सभी गेस्ट निर्धारित समय पर हॉल में पहुँच गए हैं. प्रोग्राम में भीड़ कम जुटी है, क्योंकि पडोस के थियेटर में जेम्स केमरून की नई इंग्लिश फिल्म लगी है. लेकिन प्रोफेसर साहब के पास इसका भी हल है. उन्होंने साथ लगते सरकारी स्कूल के बच्चे विशेष निवेदन करके बुला लिए हैं, तालियाँ बजाने के लिए. कार्यक्रम शुरू हो चुका है. बड़े साहित्यकार जी ने हिंदी पर बहुत ही कमाल का लेक्चर दिया है. हिंदी की दशा पर रुदन का कार्य सम्पन्न हो चुका है. प्रोफेसर साहब के अरेंजमेंट पर सब बड़े खुश हैं. इतना बढ़िया खाना, स्मृति चिन्ह, व्यवस्था देखकर बड़े साहित्यकार प्रोफेसर साहब की पीठ थपथपाते हुए आश्वासन दे गए हैं-पाण्डुलिपि दे देना..तुम्हारा काव्य संग्रह इस बार छपवा दूंगा. प्रोफेसर साहब फूले नहीं समां रहे हैं,हिंदी की चिंता और चिंतन कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया है.
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