गोधरा काण्ड की सुनवाई करते हुए माननीय न्यायालय ने 11 अभियुक्तों को फांसी व 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई है. यह फैसला उन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों के मुंह पर तमाचा है जो इस काण्ड को मात्र एक हादसा करार देने पर तुले हुए थे. वैसे हमारे देश में भी अजीब परम्परा है कि हमारे अधिकाँश राजनीतिक दल एक समुदाय विशेष के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाये हुए हैं. इसी नीति के चलते देशद्रोह और नरसंहार करने के आरोपी भी सजा पाने की बजाय सरकारी मेहमान बने बैठे हैं. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गुंडे और आतंकवादियों को बचाया जा रहा है और पूरे देश को गुमराह किया जा रहा है. अदालतों में सालों- साल मुक़दमे चलते हैं और जब दोषियों को सजा मिलती है तो उस सजा पर अमल नहीं होता. क्या राजनेता, क्या मीडिया गुजरात में हुए दंगों का ही हमेशा जिक्र करती है. लेकिन इन दंगों की जड़ यानी गोधरा काण्ड के बारे में कोई कुछ नही कहता. निर्दोष हिन्दू तीर्थयात्रियों की जघन्य हत्या कर दी गई, लेकिन सब गोधरा में हुए काण्ड को हादसा साबित करने में लगे रहे. वो तो भला हो न्यायालय का जिसने इस सम्वेदनशील मामले को हादसा नहीं साजिश करार दिया. प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने आज एक अखबार में छपे अपने कोलम में लिखा है कि न्यायालय का गोधरा काण्ड को लेकर किया गया फैसला तर्कसंगत नहीं है. यह विस्मय करने वाला है. कम से कम उनसे यह आशा नहीं थी.
अब केंद्र सरकार से कुछ सवाल-
1 क्या गोधरा का फैसला आने के बाद सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने का काम करेगी?
2 . कोर्ट द्वारा मौत की सजा प्राप्त और भारत कि अस्मिता पर हमला करने वाले अफजल गुरु और कसाब कब तक सरकारी मेहमान बने रहेंगे?
3 . अजमेर में जाकर यासीन मालिक भारत के झंडे के अस्तित्व को यह कहके ख़ारिज कर देता है की यह मेरे देश का झंडा नहीं, क्या ऐसे आस्तीन के सांप को सरकार गिरफ्तार कर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाएगी.
यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब देश की हर जागरूक जनता को दिल्ली से मांगना होगा….. आप का क्या कहना है……
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