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सच बोले कौवा काटे….

पराग
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एक कहावत है की झूठ बोले कौवा काटे. लेकिन इसे कलयुग का प्रभाव मानें या कुछ और….आजकल सब उल्टा पुल्टा हो रहा है. आजकल झूठ बोलने पर नहीं सच बोलने पर कौवा काट रहा है. यदि इस कालखंड में इस कहावत का आविष्कार होता तो निसंदेह कहावत बनती…सच बोले कौवा काटे.
अब देखिये न हमारे देश में सच बोलने वालों पर सरकार, मीडिया और प्रशासन द्वारा किस कदर जुल्म ढाया जा रहा है. राजस्थान के एक मंत्री जी ने सच क्या बोला की बवाल खड़ा हो गया…उनकी पार्टी के लोग ही उनके खिलाफ हो गये और पट्ठों ने उनका मंत्री पद छुडवा कर ही दम लिया. आखिर बेचारे मंत्री जी ने यही तो कहा था की चमचागिरी करते जाओ और मलाई खाते जाओ. आखिरकार लोकतंत्र में चमचागिरी का बड़ा महत्व है. बिना किसी का दामन पकड़े, या बिना किसी के जूतों पर पालिश करके राजनीती के इस धंधे में कोई भी अपनी दूकान नहीं चला पाया. हमे याद है कि हमारे इलाके के तोंदुमल नेताजी दस साल पहले पार्टी वर्कर्स की मीटिंगों में दरी बिछाया करते, दरी बिछाते बिछाते वे कब बड़े नेताओं की बूट पालिश करने लगे, ये उनको भी पता नहीं चला..लेकिन उस पोलिशिंग का फायदा ये हुआ की आज वे पार्टी के जिला अध्यक्ष हैं और अगले विधानसभा चुनावों में पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार हैं…यानी भविष्य की पोलिशिंग के लिए बूटों की पोलिशिंग सफलता का अचूक मन्त्र है. यदि हमारी नहीं मानते तो उत्तर प्रदेश के उन सुरक्षा अधिकारी जी को स्मरण कर लें, जो सी एम् साहिबा के जूते चमकाकर कितने पदकों, मेडलों, पुरस्कारों के हकदार बन गए……
तो इसी प्रकार की स्वर्णिम सफलता के सूत्र अपने कार्यकर्ताओं को राजस्थान के मंत्री जी बता रहे थे…तो इसमें क्या बुरा कर रहे थे….हद हो गई…सच बोलने वालों की अपन के देश में कोई कद्र ही नही है.

इधर हमारे  प्रधानमन्त्री जी भी सच बोल रहे हैं. कह रहे हैं कि मैं मजबूर हूँ. मैं लाचार हूँ. विश्व की ताकतवर शक्ति के रूप में अपनी छवि बनाने का ख्वाब देखने वाले भारत के प्रधानमन्त्री यह कह रहे हैं की मैं मजबूर हूँ, लाचार  हूँ. मुझे पता था कि मेरी टीम में अजीब-अजीब टाइप के मंत्री हैं, खाऊ और पेटू किस्म के….लेकिन क्या करूं गठबंधन धर्म भी तो निभाना है. एकदम सच्ची बात….मनमोहनसिंह जी, आज के दौर में राष्ट्र सेवा के धर्म से बढ़कर गठबंधन धर्म ही तो है…..गठबंधन धर्म सब धर्मों से बढ़कर है. लेकिन फिर वोही दिक्कत….पी एम् साहेब…इस देश के लोगों को एकदम सच्ची और शुद्ध बाते नहीं समझ में आती. अब देखिये न…प्रधानमन्त्री ने जब से ये स्वीकार किया है कि वे मजबूर हैं…क्या मीडिया. क्या विपक्ष…सब उनके पीछे पड़ गए. इसलिए बन्दा कह रहा है कि सच्चाई मत कहो..सच्चाई सब विपदाओं की जड़ है. इधर हमारे एक तेजी से उभरते हुए योगी महाराज को भी सच्चाई का भयंकर चस्का लगा हुआ है. कभी सुबह-सुबह यौगिक क्रियाएँ सिखाने वाले बाबा जी आजकल काले धन का पुराण बांचकर लोगों को सुना रहे हैं…प्रोफेशन बदलने के चक्कर में महाराज जी फटे में टांग फंसा रहे हैं….बेशक वो सच कह रहे हैं….लेकिन इस सच्चाई से हमे क्या….हमारा क्या वास्ता….हमे तो पहले से पता है की हमारा पैसा स्विस बैंक में लगा है…. तो भाई सच मत बोलो…झूठ बोलो… क्योंकि झूठ बोलना सौ प्रतिशत फायदे का सौदा है….ठीक है न…

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