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प्रेम दीवानी मीरा के कुछ पद आपकी नजर-Valentine Contest

पराग
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प्यार के अनेक रूप और रंग हैं. अक्सर प्रेम का जिक्र होते ही प्रेमी-प्रेमिका के रिश्तों की हे बात चलती है. लेकिन प्रेम के रूप और भी हैं. भाई-बहन का प्रेम. माँ-बेटे का प्रेम-पिता-पुत्र का प्रेम….. आदि. ऐसा ही एक प्रेम है भक्त और भगवान् के बीच का प्रेम. एकदम निराकार और शुद्ध. हमारी संस्कृति में ऐसे अनेक भक्तों का जिक्र आता है जो भगवान के प्रेम में इस कदर खो गए की उन्हें अपनी सुध-बुध ही नहीं रही….
राजस्थान की भक्त कवयित्री मीरा बाई को कौन नहीं जानता. कृष्ण प्रेम में दुनिया के मोह से विरक्त हुई इस महान कवयित्री को घर-परिवार के ताने सुनने पड़े, ज़माने ने उनको पागल भी कहा…लेकिन प्रेम दीवानी मीरा तो जैसे कृष्ण प्रेम में विलीन होने के लिए ही जन्मी थी. वेलेंटाइन डे के अवसर पर इस महान भक्त कवयित्री के कुछ पद आपकी नज़र

meera_bai_by_bharini

(1)

आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥

लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥

सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥

चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है

mira

(2)

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

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