प्रसिद्ध साहित्यकार अमृता प्रीतम और पेंटर इमरोज. दोनों जैसे बने हों एक दूजे के लिए. इन दोनों की प्रेम कहानी नए दौर के प्रेमियों को एक नयी दिशा देती है. अमृता जी और इमरोज का रिश्ता शाश्वत था….एकदम निश्छल….. पानी की तरह साफ़ और गंगा की तरह पवित्र. आज के दौर में जब अधिकांश प्रेमी जोड़ों की प्रेम कथा वासना जैसे स्वार्थ पर टिकी है. ऐसे में अमृता प्रीतम और इमरोज की प्रेम कहानी सच्चे प्यार की तलाश में भटकते लोगों को सच्चा ज्ञान दे सकती है.
अमृता-इमरोज के संस्मरण और अमृता जी द्वारा लिखित आत्मकथाओं को पढ़कर हम इनकी लव स्टोरी की पवित्रता को जान सकते हैं. दोनों ने पूरा जीवन एक साथ बिताया, लेकिन उन्हें अपने रिश्ते को कोई सामजिक नाम देने की जरूरत महसूस नहीं हुई. न ही आई लव यु जैसे शब्दों का मोहताज़ रहा उनका प्यार….क्योंकि जहाँ सच्चा प्रेम होता है वहां समाज के दकियानूसी नियम और मान्यताएं कोई मायने नहीं रखते. उनकी आत्मकथा रसीदी टिकट में उन्होंने इमरोज के प्रेम के बारे में लिखा है- बाप वीर दोस्त ते खाविंद किसे लफ्ज दा कोई नहीं रिश्ता उज जदों में तैनू तक्कियाँ सारे अक्खर गुर्हे (गहरे ) हो गए इस कविता में अमृता प्रीतम ने इमरोज को इंगित करते हुए कहा है की मेरे लेखन में बाप, भाई और दोस्त आदि के कारण कोई फर्क नही पड़ा, लेकिन जब मैंने उसे देखा तो मेरे शब्द अर्थपूर्ण हो गए. वेलेंटाइन डे के मौके पर मेरा इतना ही कहना है की यदि आप अपने प्यार के बारे में सिरियस हैं और निश्छल और शाश्वत प्रेम का पैरोकार है तो आपको अमृता प्रीतम की आत्मकथाएं और अन्य कृतिया अवश्य पढनी चाहिए.
हम तो इतना ही कहेंगे कि धन्य है इमरोज और अमृता जैसे प्रेमी जिन्होंने प्रेम शब्द के मायने ही बदल दिए., अंत में अमृता जी कि एक और शायरी आपकी नजर- मेरी सेज हाजिर है पर जूते और कमीज की तरह तू अपना बदन भी उतार दे उधर मूढे पर रख दे कोई खास बात नहीं यह अपने अपने देश का रिवाज है
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