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क्या हम आगे आ पायेंगे.

पराग
पराग
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मिस्र में राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के खिलाफ आम जन पिछले कई दिनों से सडकों पर है. जनता का आरोप है की एक लम्बे अरसे से सत्ता पर काबिज मुबारक और उनके परिजनों ने मिस्र को अपनी निजी जागीर बना लिया है. मिस्र में भ्रष्टाचार चरम पर है. महंगाई आसमान छू रही है. जिसकी वजह से लोगों का जीना मुहाल हो गया था. परेशान जनता ने आखिरकार बगावत का झंडा बुलंद कर लिया और मिस्र को हुस्नी मुबारक से मुक्त करवाने के लिए सडकों पर उतर आये.
अभी कुछ दिनों पहले एक छोटे से देश टुनिशिया में भी मिस्र जैसी घटना हुई थी. बेतहाशा भ्रष्टाचार और सुरसा की तरह बढती महंगाई ने यहाँ भी जनता का बुरा हाल कर रखा था, नतीजतन टुनिशिया के लोगों ने भी इस अन्याय का विरोध करने की ठानी. जिसके कारण राष्ट्रपति को देश छोड़कर जाना पड़ा.उधर जोर्डन में भी जनता सरकारी ज्यादतियों के खिलाफ उग्र हो गई है. इसी के चलते जार्डन के शाह अब्दुल्ला ने मंगलवार को प्रधानमंत्री समीर रिफै की सरकार का इस्तीफा मंजूर कर लिया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मारूफ बाखित को नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है। गत वर्ष नवंबर में हुए संसदीय चुनावों के बाद रिफै की सरकार बनी थी। जोर्डन में पिछले तीन शुक्रवार से फैले प्रदर्शन में आंदोलनकारी सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की शिकायत है कि सरकार आवश्यक राजनीतिक और आर्थिक सुधार करने में नाकाम हुई है…………………
दुनिया की इन ख़बरों से ये जाहिर होता है की किसी भी लोकतान्त्रिक देश में जनता यदि अपने वोटों से किसी जनप्रतिनिधि को चुनती है, तो उसका विरोध करने का दम भी रखती है..यानि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी है. इसलिए हुकूमतों को जनता के हित में काम करना चाहिए. वैसे आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला सहित अपने देश में भी भ्रष्टाचार का जो नाला बह रहा है उसकी दुर्गन्ध अब पूरे देश के तन्त्र को सडा रही है. विश्व के मानचित्र पर हम भी भ्रष्टाचारियों की जन्मस्थली के रूप में तेजी से अपनी पहचान बना रहे हैं. अपने यहाँ के हालात पर तो यही कविता याद आती है–
बढ़ रही है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए.
अब कोई गंगा हिमालय से निकलनी चाहिए.

क्या कोई गंगा हिमालय से निकलेगी? क्या हम भी जनहित से जुड़े मुद्दों को राष्ट्रिय स्तर पर उठाएंगे?. मिस्र. टुनिशिया, जोर्डन की तरह न सही भ्रष्टाचार और सरकारी तन्त्र को ठीक करने के लिए आम आदमी को लोकतान्त्रिक मर्यादा में रहकर आगे आना ही चाहिए.
क्या हम आगे आ पाएंगे??

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