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लक्ष्मी पूजन बनाम अफसर पूजन….

पराग
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आज एक नवम्बर है. दीपों के पर्व दीपावली में मात्र चार दिन शेष बचे हैं. फिजा में त्योहारों की खुशबू छाई हुई है. लोगों में ख़ुशी है और अफसरों और बड़े लोगों के मन में तो लड्डू फूट रहे हैं. क्यों….?………….क्योंकि भाई दिवाली है…दीवाली यानि गिफ्टों का सीजन. दीवाली यानि अफसरों के लिए चांदी कूटने का अवसर.
दीवाली लक्ष्मी पूजन का त्यौहार है. इस दिन लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं…ताकि उनकी कृपा हम सब पर बनी रहे….ऐसा किताबों में पढ़ा है. लेकिन सभी लोग इस दिन लक्ष्मी को पूजते हों….ऐसा भी नही है. वे निरीह लोग जिन्हें सरकारी महकमों से काम पड़ता रहता है…..वे लोग जो अपने दिन की शुरुआत थाने में और दिन का एंड कचेहरी में करते हैं. वे लोग जिन्हें अफसरों से अपना टेंडर पास करवाना है…वे बाबू जिनकी सिनियोर्टी होने के बावजूद परमोशन की फाइल अटकी हुई है. वे एमआर जिन्हें अपनी दवाओं का सेम्पल मेडिकल अफसर से पास करवाना है….उनके लिए लक्ष्मी जी का पुजन कोई महत्व नही रखता. उन्हें तो बस अपने सम्बन्धित अफसरों को पूजना होता है. अफसर रुपी यह लक्ष्मी यदि मान गई तो इतनी तरक्की मिलेगी की उसके आगे विष्णु भार्या लक्ष्मी का धन-वैभव कुछ भी नहीं. यही कारण है की अपने देश में दीवाली धीरे-धीरे अफसर पूजन के त्यौहार में कन्वर्ट होता जा रहा है.
वैसे दीवाली अफसरान महोदयों का स्टेटस और रूतबा भी तय करती है. यानी जिसके जितने ज्यादा गिफ्ट उसका सचिवालय में उतना ही ज्यादा रौब. किस्मत से हम भी आजकल शहर की अफसर कोलोनी में रहते हैं……नहीं नहीं अपुन कोई अफसर नही हैं……..बल्कि अफसरी से तो अपन से कुनबे का दूर-दूर तक कोई वास्ता नही है……हम तो अदने से कलम घसीटू हैं…पिछले चुनावों में महल्ले के पोपट नेता का अख़बार के कालम में खूब महिमा मंडन किया था….सो वे आजकल विधायक हैं…..और पोपट भाई के रहमोकरम से बंदे ने बिना अफसर हुए अफसर कोलोनी में टू बेडरूम का फ्लेट हथिया रखा है……बहरहाल इसी कोलोनी में दीवाली के दिनों में अफसरों की कोठियों पर जरूरतमंदों का ताँता लगा होता है. गिफ्टों की बहार आयी हुई होती है…लोग आते हैं…तरह-तरह के रंग और ब्रांड की कारों में सजे-धजे….और अपनी अफसरी लक्ष्मी को गिफ्ट रुपी चढ़ावा चढाते हैं. एक गया, दूसरा आया की तर्ज पर लोग आते हैं और महंगा गिफ्ट देकर धर्म लाभ उठाते हैं.
इधर पड़ोस के घरों की रंगीनियाँ देखकर हमारी श्रीमती जी भी कुंठित हुई जा रही है–“देखो शर्मा जी के घर गिफ्टों का मेला लग रहा है…..इतने गिफ्ट आये हैं कि घर छोटा पड़ रहा है…..कुछ ढंग का पढ़-लिख लेते तो अधिकारी होते…..लेकिन हाय री किस्मत……”
“चिंता मत करो पत्रकार होने के नाते अपने पास भी कुछ गिफ्ट आयेंगे….भले ही शर्मा जी जितने न आयें ” मैंने उसे आश्वस्त किया
तभी घर कि बैल बजी. पता चला अखबार के सम्पादक महोदय ने दिवाली गिफ्ट भेजा है.
“देखा मैं न कहता था…”
“जल्दी से खोलो….पेकिंग का साइज़ तो बहुत बड़ा है…” पत्नी चहकी.
लेकिन जब पेकिंग खुली तो पत्नी अवाक थी. अंदर दीवाली का बड़ा सा ग्रीटिंग था जिस पर लिखा था हैप्पी दिवाली.
पत्नी ने माथा पीट लिया-ये भी कोई गिफ्ट हुआ….हूँ..
अब इसको कौन समझाए कि हम अधिकारी नहीं पत्रकार हैं. बढ़िया गिफ्ट तो अधिकारीयों के करम में है…हमे तो दिवाली की सूखी बधाई मिल गयी….ये कोई कम है क्या.

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