एक मामले की सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि-अगर सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश नही लगा सकती तो उसे भ्रष्टाचार को वैध कर देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने बेशक व्यंग्यात्मक लहजे में यह कहा हो, लेकिन उसकी टिप्पणी में है दम…इसलिए सरकार को इस सुझाव पर गौर करना चाहिए. हमारा देश भ्रष्टाचार प्रधान देश है. हमारे यहाँ कण-कण में भ्रष्टाचार व्याप्त है….या यूँ कहें कि भ्रष्टाचार और हम एक-दुसरे के पूरक हैं. न भ्रष्टाचार जी को हमारे बिना नींद आती है…और न हमें उसके बिना चैन…यानि कुल मिलाकर मामला मेड फॉर इच अदर वाला है. वैसे आलोचक कुछ भी कहें… भ्रष्टाचार जिन्दगी के लिए बहुत आवश्यक है. आदमी के लिए लाइफ लाइन है यह. मनुष्य को आम से ख़ास और ख़ास को खासमखास बनाता है भ्रष्टाचार. यदि आप किसी सरकारी महकमे के मुलाजिम हैं..तो आपका भ्रष्टाचारी होना बहुत जरूरी है. आप भर पेट खायेंगे..तभी ऊपर बैठे अपने आकाओं को खिला पायेंगे…आकाओं का पेट भरा रहेगा…तभी वे आप पर मेहरबान रहेंगे. आखिर आपकी एसीआर भी तो उन्हें ही लिखनी है. वैसे भी सरकारी कार्यालयों में वे कर्मचारी एकदम निखद कहलाते हैं…जो किसी भी योजना में स्वीकृत धनराशी को ज्यों का त्यों लगा देते हैं….यह उनकी कार्य अक्षमता का परिचायक है. असली कर्मचारी वो है, जो किसी योजना के लिए आयी राशि का पचास परसेंट खुद खा जाये, चालीस परसेंट अपने उच्चाधिकारी कि बीवी को गिफ्ट कर दे और शेष 10 परसेंट योजना पर खर्च कर दे. आप ऐसे कर्मचारी को चाहे कोई संज्ञा दें….पर सरकारी भाषावली में ऐसे कर्मचारी को मोस्ट efficient कहा जाता है. तो अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार को कानूनन वैध बनाने का सुझाव दिया है…तो सरकार को इसका स्वागत करना चाहिए और भ्रष्टाचार को वैधता प्रदान करने की दिशा में कार्य करना चाहिए. मेरा मानना है की भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिलने से देश को कई फायदे होंगे. एक फायदा तो यह कि इसके वैध होने से एंटी करप्शन ब्यूरो जैसे वाहियात महकमे स्वत: ही खत्म हो जायेंगे…..जिससे इस महकमे के कर्मचारियों पर होने वाले खर्चे से निजात मिलेगी. दूसरा फायदा यह कि भ्रष्टाचार वैध होने से अधिकारी और कर्मचारी और दोगुने जोश से भ्रष्ट गतिविधियों को अंजाम देंगे…जिससे भ्रष्ट देशों कि सूची (जिसमे अपुन का देश पांचवे या छठे नम्बर पर आता है.) में भी हम अव्वल आ सकेंगे. हमारी प्रति व्यक्ति आय चाहे बढ़े या न बढ़े, कम से कम प्रति अधिकारी आय तो बढ़ेगी. इसलिए सरकार को देश में भ्रष्टाचार की जड़ों को मजबूत करने के लिए युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए. साल में दो तीन बार बाकायदा समारोह आयोजित करके भ्रष्ट अधिकारियो को पुरस्कृत करना चाहिए. इन पुरस्कारों का नामकरण भी देश के महापुरुषों के नाम पर होना चाहिए. यथा-मधु कोड़ा वार्षिक पुरस्कार या पं. सुखराम अवार्ड फॉर करप्शन आदि.
कुल मिलाकर अपुन तो यही कह सकते हैं कि देश में जब भ्रष्टाचार एक अनिवार्य और सर्वमान्य वस्तु हो ही गया है तो क्यों न इसे सविधान में शामिल ही कर लिया जाये.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments