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आओ चलें बाबा भर्तृहरि के धाम

पराग
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भारत देश तपस्वियों और मुनियों की तपोस्थली रहा है। देश के अनेक भागों में सिद्ध मुनियों ने तप साधना की और अपने तपोबल से आम जन का कल्याण किया। संत विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, पातंजलि, गौतम आदि अनेक संतों ने अपने उल्लेखनीय कार्यकलापों से भारत का नाम विश्व में रोशन किया। ऐसे ही सिद्ध संत रहे हैं भर्तृहरि, जिन्होंने अपने असाधारण कार्यों के माध्यम से जन-जन का कल्याण किया। यही कारण है कि उनके देवलोक गमन के सदियों बाद भी भक्तगण उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं। प्रतिदिन भर्तृहरि के मंदिर में आने वाली भक्तों की भीड़ यह साबित करती है कि भर्तृहरि एक महान संत थे जिन्होंने अपने तप के बल पर अपनी आत्मा को परमात्मा में विलीन कर लिया।

देवभूमि राजस्थान के जिला अलवर में हरी-भरी अरावली पर्वत शृंखलाओं की तलहटी में स्थित है—भर्तृहरि धाम। अलवर शहर से 32 किमी दूर अलवर-जयपुर मार्ग पर सुरम्य स्थान पर बसा भर्तृहरि धाम लाखों लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर में बाबा भर्तृहरि की पावन समाधि स्थित है, जहां प्रतिदिन भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरी कर धन्य होते हैं।
बाबा भर्तृहरि के संबंध में इस इलाके में अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं। सबसे मान्य व प्रचलित कथा के मुताबिक बाबा भर्तृहरि महाराजा विक्रमादित्य के बड़े भाई और उज्जैन के शासक थे। राजा भर्तृहरि न केवल न्यायप्रिय राजा थे, अपितु संस्कृत के परम विद्वान भी थे। उन्होंने संस्कृत के महान ग्रंथ शृंगार शतक, नीति शतक और वैराग्य शतक की रचना की थी। महाराज भर्तृहरि का विवाह रानी पिंगला से हुआ। रानी पिंगला अतीव खूबसूरत थी। महाराज भर्तृहरि उनसे असीम प्रेम करते थे। इतना प्रेम कि महाराज ने अंत:पुर से निकलना और राजकाज में रुचि लेना बंद कर दिया। इस बात से महाराज के मंत्रिगण अत्यंत चिंतित हुए। सभी महान मुनि योगीराज गोरखनाथ के पास गए और उनसे भर्तृहरि का रानी पिंगला के प्रति मोह भंग करवाने का आग्रह करने लगे।
योगीराज गोरखनाथ ने सभी ज्ञानीजनों को कुछ करने का आश्वासन देकर विदा किया। इधर राजा भर्तृहरि महारानी पिंगला के प्रेम में सब कुछ भुला चुके थे। लेकिन गोरखनाथ की रची माया के कारण दोनों की प्रेम कहानी में एक ऐसा मोड़ आया, जिसके बाद भर्तृहरि का जीवन ही बदल गया। महारानी पिंगला को राज प्रासाद में नियुक्त सुरक्षा बलों के प्रमुख महिपाल से प्रेम हो गया था। अब रानी पिंगला महाराज की बजाय महीपाल के प्रेमपाश में आ गई थी। महीपाल और पिंगला का प्रेम कई दिनों तक चला। कहते हैं कि एक दिन महाराज को इस प्रेम कहानी के बारे में पता चल गया। इस घटना ने राजा भर्तृहरि के जीवन को बदल डाला। महारानी से चोट खाए महाराज को सारी दुनिया मतलबी व स्वार्थी लगने लगी। उन्होंने आनन-फानन में अपने भाई विक्रमादित्य को उज्जैन की राजगद्दी पर सत्तारूढ़ कर दिया और खुद वैराग्य धारण कर, मुनि के वेश में वन-वन घूमने लगे। वन में विचरण करते हुए वे अलवर के पास पहुंचे और यहां अरावली की सुंदर पहाडिय़ों के बीच आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे। उस समय इस क्षेत्र में पानी की भारी कमी थी। कहा जाता है कि एक बार इलाके के लोग उनके पास गए और पानी की कमी को दूर करने का उनसे आग्रह किया। तब भर्तृहरि ने जल देवता का आह्वान किया, जिसके बाद पर्वतों के बीच से जलधारा फूट पड़ी। आज भी यह धारा वहां अविरल बह रही है।
भर्तृहरि के चमत्कारी कार्यों के चलते धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि पूरे इलाके में फैल गई और उनके अनुयायियों की संख्या में दिनों-दिन बढ़ोतरी होने लगी। बाबा भर्तृहरि ने अपने भक्तों के उत्थान और कल्याण के लिए बहुत कार्य किए। बाद में भर्तृहरि ने सारी मोहमाया छोड़कर प्रभु साधना में अपना जीवन लगा दिया और साधनारत रहते हुए अपनी काया को त्याग दिया। जहां उन्होंने अपने प्राण त्यागे, वहां भक्तों ने उनकी समाधि बनवा दी। यही समाधि आज भर्तृहरि धाम के रूप में लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है। मंदिर में स्थानीय लोग खासकर मीणा और गूर्जर समाज के लोग भारी संख्या में बाबा से मनौती मांगने आते हैं।
बाबा भर्तृहरि धाम में अनेक संतों के धूणे बने हुए हैं। बाबा के गुरु संत गोरखनाथ, बाबा मछिन्द्रनाथ समेत अनेक संतों के धूणे यहां स्थित हंै, जहां पूरा साल अध्यात्म व धर्म की गंगा बहती रहती है। वर्तमान समय में बाबा भर्तृहरि धाम राजस्थान ही नहीं पूरे देश में भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बिन्दु बना हुआ है।

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