मोहल्ले के सारे दुकानदार परेशान हैं. चेहरा पीला पड़ा हुआ है. हवाइयां उड़ रही हैं. ये क्या हुआ…ऐसा तो सोचा न था. कई सालों की मंदी के बाद अब तो मौका आया था…कि बिजिनेस बढेगा. खाली दुकान में भी ग्राहक आयेंगे. दुकान लेगी, तभी तो बीवी का कोमल तन महंगे गहनों से खिलेगा….कृशकाय बच्चों का चिपका हुआ पेट सेठों के बच्चों की तरह थुलथुला दिखेगा. कितने सपने देखे थे कि जैसे ही बरसों पुराने मामले का फैसला आएगा तो हमारी भी वीरान दुकान चल निकलेगी. बिजिनेस के इस सीजन को भुनाने के लिए दुकानदारों ने अपनी दुकान को माल से सजा रखा था. ग्राहकों की डिमांड पूरी हो…इसके लिए सभी तरह का माल रखा हुआ था. किसी ने अपनी दुकान को बारूद से भर रखा था….किसी ने धारदार हथियारों से……हमारी गली के एक बाजारू टाइप लेखक ने तो अपनी दूकान में तरह-तरह के भड़काऊ भाषण, स्क्रिप्ट और नोट्स की विस्तृत रेंज रख रखी थी. बाज़ार के एक कोने में कुछ ठेले भी लगे थे…जिसमे तरह-तरह के पत्थर, सड़े अंडे आदि रखे थे. मतलब बिजिनेस के जानकारों और मंझे हुए दुकानदारों ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी…ग्राहकों को रिझाने के लिए…पिछले कई दिनों से बाज़ार सज कर तैयार था. इस उम्मीद में कि फैसला आते ही सारी अगली-पिछली कसर पूरी हो जायेगी. लेकिन जब फैसला आया तो सारे दुकानदार एकदम बेदम हो गये….सारी तैयारियां धरी रह गई… ऐसा फैसला…. ये भी कोई फैसला होता है… ये आस्था है या फैसला….मंझे हुए दुकानदार आपस में चर्चा कर रहे हैं. एक पुराना दुकानदार बोला-ये जनता भी एकदम बोगस हो गयी है…फैसले पर कोई फैसला नहीं…बीस साल पहले तो बड़ी हाय-तौबा मचाई थी लोगों ने…लेकिन इस बार…. बिजिनेस ठप्प होता देख एक धर्मनिरपेक्ष दुकानदार अपने पुराने अंदाज में आ गया. अपने जमे-जमाये ग्राहकों से बोला-ये फैसला है या….प्रभु का गुणगान….फैसले से हम ठगा महसूस कर रहे हैं. लेकिन हाय री किस्मत….. हर बार कि तरह आक्रामक नजर आने वाले ग्राहक इस बार बिलकुल शिथिल पड़ें हैं… कुछ भी नहीं बोल रहे…उल्टा पुराने दुकानदार को कह रहे हैं….तू ठेकेदार मत बन….हम समझदार हो गये हैं. समझदारी का नाम सुनते ही सारे दुकानदारों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर गयी हैं….ये लकीरें शायद भविष्य की चिंता की है…अब क्या होगा…ग्राहक समझदार हो गए हैं…..हम कैसे पेट पालेंगे…हमारे पत्थर कोई नही खरीद रहा…बगल के फूल बाज़ार में भीड़ लगी है. लोग पुष्पगुच्छ एक-दूसरे को भेंट कर रहे हैं…..हे राम…हे रहीम….ये क्या हो रहा है……लोगों के दिमाग में समझदारी मत भर….हमारा धंधा ठप्प मत कर.
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