बेशर्मी…..कहने को यह तीन अक्षरों का एक शब्द है…एक ऐसा शब्द जो सुनने वाले और पढने वाले दोनों के कान और आँख में खटकता है. लेकिन बेशर्मी कि यह कला अगर किसी को आ जाये तो ये समझिये कि आज के परिप्रेक्ष्य में उसका जीवन बिलकुल सफल हो जाए. बेशर्मी जीवन में उर्जा भारती है. आम को ख़ास और ख़ास को खासमखास बनाती है बेशर्मी.
मैं ऐसे कई बेशर्मों को जनता हूँ…जो बेशर्मी के बावजूद शर्म वालों से ज्यादा इज्जतदार जीवन जी रहे हैं. पुरस्कृत हो रहे हैं….समाज में रुतबा रखते हैं…और उसे प्रभावित करने कि क्षमता भी. वैसे मैं कई शर्मदारों को भी जानता हूँ. जिनकी आँखों और व्यक्तित्व में ताउम्र शर्म रही. उन्हें समाज की शर्म रही….इसलिए हमेशा मर्यादा में रहकर काम किया ….उन्हें परिवार की शर्म थी…इसलिए कभी भी राह चलती लड़कियों और पड़ोस की बहुओं को नहीं छेडा. उन्हें देश की शर्म थी… इसलिए उच्च पदों पर रहते हुए भी कभी एक भी पैसा ऊपर का नहीं बनाया. लेकिन जीवन के हर मोड़ पर शर्म करते-करते उनकी तरक्की और उठान पर ब्रेक लग गया…न समाज ने उन्हें कोई ख़ास इज्जत दी और न ही उनके बेटे-पोतों ने….यानि शर्म के चक्कर में वे खुद ही शर्मनाक हो गये. शर्म एक मनहूस शब्द है… जो आदमी को कुंठित करती है…जबकि बेशर्मी आत्मविश्वास से लबालब शब्द है…जो मनुष्य को उचाईयों की और ले जाता है… इधर बेशर्मी आजकल सार्वजनिक या यूं कहिये कि सार्वभौमिक हो गयी है. बेशर्मी की लोकप्रियता बराक ओबामा की तरह बढ़ रही है…जबकि शर्म जरदारी की तरह हो गयी है…जिसे उनके खुद के देश में ही कोई नहीं पूछ रहा. कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली तक शर्मदार ढूंढे से नहीं मिल रहे. दिल्ली की बात चली तो याद आया की सबसे ज्यादा बेशर्मों का डेरा ही यहीं है..(कृपया दिल्ली वाले इसे अन्यथा न लें..) यहाँ कदम-कदम पर बेशर्मों का जमावड़ा है. सबसे ज्यादा बेशर्म तो ऑटो वाले हैं जो तीन किलोमीटर चलने का भी 150 रुपया ऐंठ लेते हैं. यहाँ से निजात पाओ तो बस या मेट्रो में जेबतराश बेशर्मी से घुमते मिल जाते हैं. कहीं खाकी वाले बेशर्म हैं तो कहीं खादी वाले बेशर्म घूम रहे हैं. वैसे आजकल दिल्ली में बेशर्मों की नई बस्ती बन गयी है…कहाँ….आपको नहीं पता…… अरे भाई अपने खेलगांव के आसपास ही यह नई बस्ती बनी है. यहाँ आते ही आपको बेशर्मी की महक आएगी. करोड़ों खर्च करने के बाद भी टूटी फाल्स सीलिंग और गिरा हुआ पुल नजर आएगा. बाज़ार भाव से ऊँचे दामों पर ख़रीदे गए उपकरण नजर आयेंगे. खेलगांव में आपको सूटेड-बूटेड बेशर्म मिलेंगे. बेशर्म आयोजकों के बढ़ा-चढ़ाकर किये गए दावों के दर्शन होंगे…और इन दावों की पोल खोलते विदेशी खिलाडियों और मेहमानों के आरोप आपको सुने देंगे. यहाँ आपको बेशर्मी से की गयी फिजूल खर्ची से बने स्विमिंग पूल मिलेंगे…और उन पूलों में बहती हुई मिलेंगी…करोड़ों देशवासियों की उम्मीदें…उनके सपने……….यानि चारों और बेशर्मी ही बेशर्मी. तो यदि बेशर्मों की इस बस्ती में आपको भी रहना है तो थोड़ी…बल्कि बहुत सारी बेशर्मी सीख लो ताकि जीवन सुखमय बने…..तरक्की हो और उसमे बहार आये…. क्यों सही सलाह है न……
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