अपना देश यानी….हड़तालों का देश. बिजली न मिले तो हड़ताल, पानी न मिले तो हड़ताल…प्रमोशन न मिले तो हड़ताल….वेतन न मिले तो हड़ताल. यानी हर चीज का सोलुशन हड़ताल.
कल यानी 7 सितम्बर को अपने यहाँ हड़ताल थी. इस हड़ताल के चलते आम लोगों को भारी तकलीफें तो हुई ही. देश की अर्थव्यवस्था भी चोपट होकर रह गई. एक दिन की हड़ताल ने देश का करोड़ों रुपए का नुक्सान कर दिया. हमारे राष्ट्रपिता गाँधी जी ने अपने विरोध को दर्शाने के लिए देशवासियों को सत्याग्रह यानी हड़ताल का रास्ता अपनाने की सलाह दी थी. अपने जीवन काल में उन्होंने हड़ताल का सफल और सकारात्मक प्रयोग भी किया. लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा होगा की सरकारी कर्मचारी हड़ताल का इस तरह दुरूपयोग करेंगे. इस देशव्यापी हड़ताल के साथ ही पिछले कुछ दिनों से राजस्थान में चली आ रही जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल भी खत्म हो गयी. आपको पता है कि ये डॉक्टर हड़ताल पर क्यों गए थे….. क्योंकि किसी डॉक्टर के साथ किसी मरीज के परिजनों ने हाथापाई कर दी थी. इसी के विरोध में प्रदेश के सभी जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए. राजस्थान…जिसके कई इलाकों में स्वाइन फ़्लू और डेंगू जैसी प्राणघातक बीमारियाँ फैलीं हैं…इस हड़ताल से बुरी तरह प्रभावित हुआ. हड़ताल के दौरान आये सिरियस मरीजों को देखकर भी भगवान् कहलाने वाले इन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा. डॉक्टरों की हड़ताल के चलते 50 के करीब लोग काल के ग्रास बन गये. कौन है इनकी मौत का जिम्मेदार? किसकी लापरवाही से मासूम मरीज जान से हाथ धो बैठे? क्या देशवासियों की जान इतनी सस्ती है? इन प्रश्नों का जवाब कौन देगा? कोई है…जो बताये कि हड़ताल से हुई नुक्सान की भरपाई कैसे होगी..खासकर जो मरीज जान गवां बैठे हैं..उनके परिजनों की पीड़ा कैसे दूर होगी………..कोई है…..
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