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हाँ मैंने भी प्यार किया है…….

पराग
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सर्वप्रथम तो उन सभी ब्लोगर्स को बधाई, जिनके नाम टॉप टेन लिस्ट में शामिल है. रिजल्ट करीब-करीब वही हैं, जिसकी हमे आस थी. सभी दस बहुत काबिल हैं और इस पुरस्कार के हकदार है. सभी को बधाई. बहरहाल अब करें अपनी बात…… तो जनाब बात यह है कि पिछले कुछ दिनों से हमे भी प्यार हो गया है…. किस से ……भाई हमारे नेक्सट महल्ले में रहने वाली अंजली से.
चलिए प्रेम गाथा आगे बढे इस से पहले आपको अंजली जी का बायोग्राफ बता दें. तो साहब अंजली हमारे शहर की नामी खूबसूरत हसीना है. परचून का सामान बेचने वाले एक साधारण से पिता की बेटी अंजली पर नगर के कई छोरे मरते हैं. कईओं को तो बाकायदा उसका सारा shadule पता है. मसलन वो कब घर से निकलती है. कब घर जाती है. उसका टयूशन क्लास तक जाने का रूट kya है… वगेरा…वगेरा. चूंकि अंजली के ही महल्ले के पास हम रहते थे, तो कभी कभी नजर हम भी मार लिया करते थे. पर राम कसम वो नजर खराब नहीं होती थी….ये बात अंजली भी जानती थी. इसलिए पिछले कुछ दिनों से शहर की खुशवक्त केन्टीन में वो मेरे पास बैठ जाती थी. बदले में हम भी उसे साढ़े तीन रु कीमत वाले समोसे खिला देते थे. शहर में हाई-फाई रेटिंग वाली इस कन्या का एक दिन सुबह अपुन के मोबाइल पर sms आया-“मीट मी एट डी पार्क. टाइम शाम 6 :33 मिनट”.तैंतीस मिनट उसने इसलिए लिखे, क्योंक वो हर काम नाप तौलकर करती थी. ठीक अपने बाप की तरह. हमे याद है की जब हम उसके बाप की दूकान से दाल लेने जाते थे तो वो भी ज्यादा तौल हो जाने पर एक-एक दाल गिनकर उसमे से निकल लेता था.
खैर…इस sms को पढ़कर आप जान सकते हैं दिल की हालत. जिसके पीछे सब पड़े…वो हमारे पीछे… यह सोचकर ही मुझे अपने पर.. अपनी यूनिक पर्सनल्टी (हसना मत …) पर गर्व होने लगा. मैंने पूरा दिन प्रेमिका से मिलने की तैयारियों में बिता दिया. आखिर वो घडी आ ही पहुंची जब दो सितारों का जमीं पर मिलन (वो भी अकेले में ) होने वाला था. मैं निर्धारित समय पर डी पार्क पहुँच गया. सामने एक पेड़ के नीचे अंजली नज़र झुकाए बैठी थी. अचानक मुझे शहर के मौसम में बदलाव महसूस हुआ. ………और दिनों की तपिश से अलग आज वातावरण में ठंडक थी. रोज बदबूदार रहने वाला शहर का ये उपेक्षित पार्क भी आज तरह-तरह के सुगन्धित फूलों से महक रहा था….अरे ये क्या…मेरे चारों ओर एक जैसी ड्रेस में कुछ लड़के-लड़कियां भी खड़े थे. ठीक वैसे ही जैसे फिल्मों के गानों में हीरो के पीछे नाचने वाला कोरस खड़ा होता है.
इतने सारे सुखद अनुभवों से गुजरता हुआ मैं अपनी प्रेयसी के पास पहुंचा.
“आओ बैठो…” वह बोली.
मैं सकुचाया सा उसके नजदीक जाकर बैठ गया.
“प्रेम क्या है…” उसने पुछा.
“प्रेम एक गहरी नदी है. जिसमे तैरकर लोगों को खुदा के दर्शन होते हैं. प्रेम आत्मा को परमात्मा से मिलाने का एक जरिया है.” मेरे द्वारा पढ़े गए गुलशन नंदा के उपन्यास आज काम आ रहे थे. ये सभी डायलोग उनके उपन्यासों से ही लिए गये थे.
“अच्छा… आपकी तनख्वाह कितनी है.” दूसरा प्रश्न.
“पूरे 4800 रु… साथ में अखबारों में लिखकर 400 – 500 रु और मिल जाते हैं ” मैंने कहा.
“ऐसा है भाई…”उसने कहा..
“बुरा मत मानना” अंजली आगे बोली.”आपके और मेरे विचार नहीं मिल पायेंगे.प्रेम आपके लिए पूजा है. लेकिन मेरे लिए….”
“आपके लिए क्या है प्रेम….” मैंने हिम्मत करके पूछा
“प्रेम मेरे लिए होंडा सिटी है….अंसल का फ्लैट है…..lg का 34 इंच का LCD है…….वोल्टास का ac है…तनिष्क का नेकलेस है………….”
अंजली जी अभी भी चालू थी.
“आप 4800 कमाते हैं…..माफ़ करना…. इतनी पगार में आप प्रेम कर रहें हैं. आपको प्यार का कोई हक नहीं. प्यार मजबूत दिलवालों का काम है और दिल मजबूत होता है पैसे से….सॉरी बेशक पैसा खुदा तो नहीं, लेकिन खुदा से कम भी नहीं…. ” अंजली में अब जूदेव और बंगारू लक्ष्मण की आत्माए घुस गई थी. मैंने उससे विदा लेना ही उचित समझा.
मैं पार्क से वापस चलने लगा. महसूस हुआ कि नगर के इस एकमात्र पार्क में बहुत गंदगी है. सड़ी हुई सड़कें. टूटे हुए पेड़….दरकी हुई दीवारें….
कल ही नगरपालिका में इसकी शिकायत करता हूँ….मन ही मन बडबडाता हुआ मैं घर को लौट आया….

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