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सम्मान… सम्मान…सम्मान..

पराग
पराग
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ओनर यानि सम्मान. सम्मान यानि एक ऐसी अंधी दौड़ जिसे पाने के लिए क्या आम और ख़ास सभी इसमें शामिल हुए जा रहे हैं. सम्मान या ओनर पाने के लिए आदमी क्या कुछ नहीं करता. तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है… अपने से आगे वाले को रौंदने की कोशिश करता है. यहाँ तक कि ओनर के लिए अपनों की किलिंग करने से भी गुरेज नहीं करता. मतलब लोगों को आजकल सम्मान चाहिए….किसी भी कीमत पर.
आज सुबह जैसे ही अखबार के पन्ने पलटे. रोज की तरह हत्या, बलात्कार, खेल में भारत की हार की ख़बरों से सामना हुआ. ख़बरों की इस भीड़ में छपे एक कानूनी नोटिस पर मेरा ध्यान गया. लिखा था- मैं हसमुख देसाई अपने पुत्र विवेक को अपनी चल-अचल सम्पत्ति से बेदखल करता हूँ………… ये क्या हुआ…. मैं चौंका. मेरा चौंकना स्वाभाविक ही था. हसमुख जी को मैं काफी अरसे से जानता हूँ. हमारे गाँव के सरपंच हैं. लोगों के दुःख-सुख में काम आते हैं और समाज में काफी सम्मानित व्यक्ति हैं. उनका लड़का विवेक भी काफी सभ्य है. पिता-पुत्र के रिश्ते में कोई तनाव नहीं था… फिर अचानक अब क्या हुआ की हसमुख जी ने ये नोटिस छपवाया. मामले की तह तक जाने के लिए हमने अपने सूत्रों को खंगाला. पता चला की मामला प्यार-व्यार का है. हसमुख जी के पुत्र विवेक का पडौस के गाँव में रहने वाली एक कन्या से अफेयर चल रहा था. सुना है की इस अफेयर की खबर आस-पड़ोस वाले सब लोगों को थी, लेकिन हसमुख भाई को नहीं हो पायी थी. …क्यों इसका कारण तो वही जाने… खैर ताजा मामला यह था कि प्रेमी जोड़े को कुछ दिन पहले यह पता चला की दोनों की नानी के गौत्र आपस में मिलते हैं… इसलिए सीधे-सीधे उनका विवाह हो नहीं सकता था. सो दोनों ने चुपचाप शादी कर ली थी. अब चूंकि हसमुख जी ठहरे गाँव के सरपंच……. पूरे गाँव में उनका रुतबा था. यही नहीं प्रेम विवाह के वे सख्त खिलाफ थे. पंचायत में न जाने कितने प्रेमी जोड़ों के रिश्तों को उन्होंने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते में तब्दील करवा दिया था. आस-पड़ोस के गांवों में भी वे अति सम्मानित थे. ऐसे में उनके पुत्र ने आज उनके सम्मान को ठेस पहुंचाई थी, इसलिए वे व्यथित थे. तभी आनन-फानन में उन्होंने अपने इकलौते पुत्र के लिए नोटिस निकलवा दिया. ….इस घटनाक्रम से मैं भी परेशान हो गया था…. इसलिए मैंने हसमुख जी के पास फोन मिलाया.
“भाई साहब ये क्या कर रहे हैं आप….. बच्चे की ख़ुशी इसमें है तो यही सही…” मैंने कहा. हसमुख जी बोले “नही शर्मा जी… आखिर घर की इज्जत भी कोई चीज होती है.”
“लेकिन विवेक आपका इकलौता पुत्र है… वही नहीं होगा तो इज्जत और सम्मान का आप क्या करेंगे.” मैंने प्रश्न दागा.
“चाहे जो भी हो समाज में अपना सम्मान कायम रखने के लिए मुझे जो करना पड़े मैं करूँगा…. रिश्ते-नाते नहीं मेरे लिए समाज और सम्मान कहीं बढ़कर हैं.”
…..मैं निरुत्तर हो गया….मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा था.

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