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जय हो टीआरपी मैया की…..

पराग
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टीआरपी यह शब्द आपने खूब सुना होगा. टीआरपी आमतौर पर टेलीविजन के सीरियल्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है. टीआरपी किसी भी कार्यक्रम की लोकप्रियता तय करता है. यानी जिस प्रोग्राम की जितनी ज्यादा टीआरपी-वह उतना ही ज्यादा लोकप्रिय. लोकप्रियता के इस चक्कर में प्रोग्राम निर्माता अपने सिरिअल्स में हर तरह के मसाले, बे-सिरपैर की घटनाएं डालता है. मकसद एक ही है कि किसी तरह टीआरपी बढे. फिर चाहे किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ ही क्यों न हो.
इन दिनों विभिन्न चेनलों पर विविध प्रकार के सीरियल कब्ज़ा जमाये हुए हैं. जो लोगों खासकर हमारी आधी आबादी यानी महिलाओं को काफी रिझाते हैं. इन सीरियलों का घर-परिवार पर बड़ा जबरदस्त प्रभाव है. यदि बिंदी लगनी है तो पार्वती भाभी स्टाइल में, साडी पहननी है तो अक्षरा जैसी. सूट पहनना है तो लक्ष्मीबाई जैसा….. वगेरा…वगेरा…. इतना ही नहीं इन चेनलों के मायाजाल से हमारे रिश्ते नाते भी प्रभावित हो रहे हैं. पहले ब्याह के लायक लड़की कामना करती थी कि उसका पति सुंदर हो, गुणी हो….. लड़का चाहता था कि उसकी सपनों कि रानी सुशील हो, खूबसूरत हो इत्यादि. लेकिन आजकल यह तुलना भी टीवी प्रोग्राम से की जाने लगी है. मसलन लड़की चाहती है की लड़का देव की तरह या फिर नैतिक की तरह हो… लड़के को अपने होने वाली में अर्चना, अक्षरा की छवि दिखती है. सास चाहती है कि उसकी बहु रागिनी जैसी हो, वहीं दामाद मिले तो मानव जैसा….. यानी हर शब्, हर सुबह, हर पल, हर क्षण हमारा टीवीमय होता जा रहा है. हमारे जीवन में टीवी का बढ़ते प्रभाव का फायदा सीरियल निर्माता और शोबिज से जुड़े लोग उठाते हैं. इन टीवी सीरियलों की लोकप्रियता दिनों-दिन बढे और सालों तक कायम रहे, यानी टीआरपी बढे, इस चक्कर में सीरियल निर्माता इनकी कहानी में नया-नया और कभी-कभी हज़म न होने वाला बदलाव लाते है….बेशक इससे दर्शकों का हाजमा बिगड़ जाए, इससे इन लोगों का कुछ लेना-देना नहीं है. इन्हें तो बस अपनी टीआरपी बढ़ने से मतलब है.
कलर्स पर इन दिनों एक सीरियल चल रहा है-बालिका वधु. गिरती trp के चलते इसमें एक नया किरदार पेश किया गया है-टीपरी. अब टीपरी की हरकतें और उसकी अजीबोगरीब lovestory किसी को न उगलते बन रही है न निगलते…. लेकिन चक्कर वही टीआरपी….
इसी तरह कलर्स के ही सीरियल “ना आना इस देस मेरी लाडो ” में अचानक अम्माजी की एक डाकू बेटी अवतरित हुई है, जो नित नए खेल दिखा रही है. मतलब टीआरपी निर्माताओं से क्या कुछ नहीं करवाती. कभी मरे हुए को जिन्दा करवा देती है. कभी हीरो को विलेन बना देती है…. यानि टीआरपी का ही सब खेल है.
टीआरपी का ये खेल पिछले कुछ दिनों से jagranjunction पर भी खूब खेला जा रहा है. ब्लॉग की टीआरपी कैसे बढे…इसके लिए हमारे ब्लोगर्स ने भी सभी तरह के हथकंडे अपनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. खासकर ब्लॉग स्टार कांटेस्ट की अवधि के दौरान तो काफी ब्लोगरों को केवल अपनी टीआरपी की ही फ़िक्र दिखी. इस कांटेस्ट के दौरान कई बार हमें ऐसे हथकंडे देखने को मिले, जैसे ब्लोगर्स के शरीर में एकता कपूर की आत्मा घुस गई हो. रिअलिटी शो की तरह लोगों ने अपने ब्लोग्स पर प्रतिक्रिया भी मंगनी शुरू कर दी. किसी ने चाचाजी से रिश्तेदारी जोड़ ली, तो किसी ने bouncer फैंकने शुरू कर दिए. हद तो तब हुई जब लोगों ने गधों की वंदना शुरू कर दी. यानी चक्कर यहाँ भी टीआरपी का. सभी को टीआरपी की चिंता दिखी… कि किसी तरह टीआरपी बढे और हम लैपटॉप, स्मार्टफ़ोन, या फिर डिजिटल कैमरे का वरण करें………तो… जय हो टीआरपी मैया की….

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