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वाह रे मौनी बाबा

पराग
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एक थे मौनी बाबा. … नहीं नहीं……. मौनी बाबा कोई साधू नहीं थे, बल्कि एक उलझे हुए…., सॉरी, एक सुलझे हुए नेता थे. राजनीती उनकी नस-नस में थी, या यूँ कहिये कि खून बनकर उनकी रगों में बह रही थी. लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर वे जनता से कुछ कहने की बजे चुप्पी साध लेते थे, इसलिए उनका नाम मौनी बाबा रख दिया गया था.
विश्वेश्वर प्रसाद उर्फ़ मौनी बाबा जब राजनीति में आये, तब बिलकुल सीधे-साधे थे, शरीर एकदम कृशकाय था, और चरित्र बिलकुल साफ़. लेकिन अब सब उसके उलट हो गया है. चूंकि नेता जी अब “खाने ” के शौक़ीन हो चुके हैं. इसलिए अब उनकी काया भी विकराल हो चुकी है. ठीक अपने क्रिकेटर युवराज भैया कि तरह, उनका फिटनेस देखकर भी लोग हैरान-परेशान हैं. जैसा कि पहले ही मैंने आपको बताया, नेताजी को खाने का बहुत शौक है… फिर चाहे वो भोजन हो या कुछ और. कुछ और……….. मसलन रुपया, पैसा. सीमेंट, कारखाना, गरीब का हक़, जरूरतमंदों कि छत….. प्रसाद जी सब कुछ खा जाते हैं और पाचन शक्ति देखिये कि बिना झंडू पंचारिष्ट खाए, वे ये सब हजम कर जाते हैं. इतना खाऊ किस्म का नेता हो.. और उसके ऊपर आरोप न लगें, ये हो नहीं सकता. इसलिए हमारे प्रसाद जी पर भी गाहे-बगाहे आरोप विपक्षी पार्टी वाले लगाते ही रहते हैं. अगर आरोप छोटा-मोटा हो तो प्रसाद जी खुद ही उस आरोप का खंडन कर देते हैं. लेकिन अगर कोई गंभीर आरोप लगे तो ऐसे नाजुक समय में वे मौन हो जाते हैं.
ऐसा ही कोई गंभीर आरोप उन पर इस समय लगा है. कहा जा रहा है कि प्रसाद जी आज से कोई 20 बरस पहले जब मंत्री थे, तो एक हादसा हुआ था. उस समय एक फैक्ट्री में आग लगने से हजारों मजदूर खाक हो गए थे. फैक्ट्री का मालिक अपने प्रसाद जी का करीबी था, इसलिए सभी-नियमों को ताक पर रख कर प्रसाद जी ने उसे विशेष रेल से घटनास्थल से भगा दिया था. चूंकि बैठे-ठाले हम भारतियों को गड़े मुर्दे उखाड़ने कि आदत है, इसलिए अब बीस साल बाद उस भगोड़े मालिक को ढूँढने कि कवायद चल रही है. कहा जा रहा है कि मंत्री जी ने ही उसे भगाया है, इसलिए वे ही उसे खोजेंगे.
काफी संख्या में आम लोग, कुछ खास लोग और कुछ मीडिया के लोग उनकी कोठी के आगे खड़े हैं… मंत्री जी से सच जानने के लिए. लेकिन मंत्री जी बहार आ ही नहीं रहे. काफी देर की मशक्कत के बाद उनका एक प्रतिनिधि बाहर आया है.
“सच क्या है…. मंत्री जी हमें बताएं.” सभी ने एकस्वर में कहा.
“ऐसा है…. इस घटना से मंत्री जी भी दुखी है. दुखी होकर वे मौन व्रत धारण किये हुए हैं. इसलिए अभी वे चुप रहेंगे.”
” लेकिन देश सच्चाई जानना चाहता है”. मीडिया वाले चिल्लाये.
प्रतिनिधि खीजा “मंत्री जी भी सचाई जानना चाहते हैं. इसलिए आपके हित कि खातिर मौन रहकर तपस्या में लीन हैं. यकीन जानिये उन्हें जैसे ही कैवल्य कि प्राप्ति होगी. वे आपको सब कुछ बताएँगे. तब तक आप भी चुप रहें , क्योंकि चुप्पी में बड़ी शक्ति होती है.” यह कहकर प्रतिनिधि wahan se khisak liya. thodi der me kothi ka gate bhi band ho gaya.
…logon ke paas chuppi sadhne aur wahan se chale jaane ke alawa koi vikalp shesh nahin rah gaya tha.

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