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जाति ना पूछो साधू की

पराग
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लम्पट जी हमारे इलाके के सांसद हैं. वे पिछली 5 योजनाओं से सांसद हैं, तो सिर्फ इसलिए, क्योंकि वे घोर जातिवादी हैं. जातिवाद, उनके लिए एक संजीवनी है, जो हर बार उनके विवादास्पद राजनैतिक करियर को आरोग्य प्रदान करती है. जाती की सीढियां चढ़कर लम्पट आज संसद के गलियारे में ठाठ से अपनी दूकान चला रहे हैं.
देखा जाए तो लम्पट जी यों ही जातिवादी नहीं हो गए…., पहले वे भी इन्सान थे. राजनीती का शौक था, लेकिन कभी गली-महल्ले का प्रधान भी नहीं बन सके, क्योंकि वो ऐसी जगह से चुनाव लड़ते थे, जहाँ वे अल्पसंख्यक जाती के थे. धीरे-धीरे उन्हें राजनीती की समझ आने लगी और उन्होंने हमारे क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया, क्योंकि यहाँ उनकी जात के बहूत से लोग थे. जात-पात का नारा देकर जब वे एक बार इस क्षेत्र से जीते, तो भाई उसके बाद तो हर चुनाव में वो जीतते चले गए. लम्पट जी आजकल इलाके में बहुत लोकप्रिय हैं.
लेकिन वे इसलिए लोकप्रिय नहीं है कि उन्होंने इलाके में कोई विकास कार्य करवाएं हैं. विकास और लम्पट तो एक दुसरे के सर्वथा विपरीत हैं. लम्पट सिंह तो इसलिए लोकप्रिय हैं. क्योंकि वे अपनी बहुसंख्यक जाति कि खूब सुनते हैं. बेशक किसी युवा को उन्होंने रोज़गार नहीं दिया है, न ही इलाके में बिजली पानी की व्यवस्था की है. सड़कें तो उनके सांसद बनने के बाद ऐसे गायब हुईं, जैसे तो राजनीती से नैतिकता. लेकिन इन सबके बावजूद वे जनप्रिय हैं. जनता का कहना है कि लम्पट जी हमारी जाति से हैं और आज संसद में हमारी जाति के प्रतिनिधि हैं. यह हमारी जाति के लिए गौरव की बात है. अब वो विकास कार्य करें या न करें इस बात से क्या फर्क पड़ता है. पिछले दिनों जनगणना में जाती को शामिल करने के मुद्दे पर उन्होंने पूरे ढाई दिन की भूख हड़ताल की थी.
………..खैर…. कल एक अनहोनी घटना हो गई लम्पट जी के साथ. ….हुआ ये कि वो एक शोरूम का उदघाटन करने के बाद अपने घर जा रहे थे कि रस्ते में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई. सड़क पर लावारिस पड़े लम्पट जी व उनके ड्राईवर को एक साधू ने अस्पताल पहुँचाया.
होश आने पर लम्पट जी ने अपनी आदतानुसार प्रश्न किया “कौन जाति के हो बाबा.”
“हिन्दुस्तानी ” बाबा ने कहा.
“ये कौनसी जाति हुई……”
“ये वो जाति है, जो इंसान को इन्सान से जोडती है. इसी जाति और सम्बन्ध के कारण ही आप कि जान आज बच सकी, मुझे पता है नेता जी आप ने पिछले २० सालों में इस इलाके को जातिवाद की आग में जला दिया. जब आपको सड़क पर पड़ा देखा तो मैंने सोचा, चलो एक बेकार के नेता से इस देश को छुटकारा मिलेगा… लेकिन यह हिंदुस्तानियत ही थी, जिसने मुझे आपको अस्पताल में ले जाने को प्रेरित किया.” बाबा ने दार्शनिक अंदाज में उत्तर दिया.
सन्यासी की बात सुनकर लम्पट जी को ग्लानि हुई. उन्होंने सोचा कि सच है कि उनकी जात-पात की राजनीति ने इलाके का माहोल बिगाड़ने और उनका माहोल संवारने में बड़ी भूमिका अदा की है.
……”तुमने मेरी आँखे खोल दी बाबा, अब मैं सदा जीत के रस्ते पर ही चलूँगा ” लम्पट जी ऐसा कहने ही वाले थे की उन्हें अपनी आँखों के सामने अपना वोट बैंक नजर आया. उन्हें नजर आया की कैसे इस वोट बैंक ने उनकी जिन्दगी की दिशा और दिशा बदल दी थी, पैसे. शोहरत.इज्जत , नाम, दाम, गाडी,……… सब जाति पर टिके उनके वोट बैंक के कारण ही तो था.
“भागो इस साधू को यहाँ से, ये मेरे मन को विचलित कर रहा है, ऐसी सदी-गली बातें सिखा रहा है, जो इस इलाके के लिए घातक हैं. सही कहा है किसी ने की जात न पूछो साधू की………….” लम्पट जी बडबडा रहे थे.

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