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इस बार जब साईबाबा के दर्शनार्थ शिरडी जाना हुआ तो, कुछ शुभचिंतकों ने सलाह दी कि शिरडी जा रहे हैं, तो वहां से त्र्यम्बकेश्वर जरूर जाना। शुभचिंतकों की आज्ञा को भगवान् शिव का आशीर्वाद मानकर मैं त्र्यम्ब्केश्वेर पहुँच गया.
नासिक से 30 कि.मी स्थित त्र्यम्बकेश्वर महान तीर्थस्थल तो है ही, साथ ही एक खूबसूरत हिल स्टेशन भी है। हरियाली से आच्छादित ब्रह्मïगिरि पर्वत और कल-कल का नाद करती गोदावरी नदी, आने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। ब्रह्मïगिरि पर्वत को भगवान शंकर का प्रतिनिधि और गोदावरी का उद्गम स्थल माना जाता है। इसी पर्वत की तलहटी में त्र्यम्बकेश्वर शिव मंदिर है। काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर अपनी बारीक नक्काशी से श्रद्धालुओं का मन मोहता है। भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यह त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग। कालान्तर में त्र्यम्बकेश्वर अनेक साधु-संतों की तपोस्थली रही है। शिवपुराण के अनुसार त्र्यम्बकेश्वर में साक्षात् भगवान विष्णु, ब्रह्मïा व शंकर का निवास है, इसीलिए इसे सब तीर्थों का सिरमौर माना गया है।
……….बहरहाल, जब मैं मंदिर परिसर में पहुंचा तो काफी लम्बी घुमावदार लाइन थी। चूंकि मंदिर के कपाट बंद होने का समय नौ बजे का था और मैं साढ़े आठ बजे मंदिर पहुंचा, तो ऐसे में भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो पायेंगे, इसकी गुंजाइश कम ही थी. लेकिन आप चाहे इसे कुछ और मानें हम तो इसे भोलेनाथ का चमत्कार ही मानेंगे कि एक छोटा-सा बालक मेरे पास आया और दस रुपये मेें शॉर्टकट से दर्शन करवाने का ऑफर देने लगा। मैंने उसे दस रूपये दिए. इसकी एवज में वो बालक मुझे वहां कि गलियों में से घुमाता हुआ मंदिर के उस हिस्से में ले आया, जहाँ से पवित्र ज्योतिर्लिंग मात्र दस कदम कि दूरी पर था. मैंने उस बालक और भगवान आशुतोष दोनों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की.
मंदिर के गर्भग्रह में एक गड्ढा बना हुआ है, जिसमें तीन छोटे-छोटे लिंग हैं जिन्हें ब्रह्मïा, विष्णु व महेश का प्रतीक माना जाता है। त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। शिवपुराण के मुताबिक यह स्थान कभी ऋषि गौतम और हजारों साधु-संतों का तपोस्थल था। अपनी साधना और तपोबल के कारण ऋषि गौतम अन्य सभी संतों से इक्कीस पड़ते थे। उनकी प्रसिद्धि से सारा संत समाज चिढ़ता था। एक बार कुछ साधुओं ने ऋषि गौतम को गोहत्या के झूठे आरोप में फंसा दिया। गोहत्या के कलंक से छुटकारा पाने के लिए महर्षि गौतम ने ब्रह्मïगिरि पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रकट होने और उनकी जटाओं में बसी गंगा को अवतरित होने के लिए मजबूर कर दिया, तभी से माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में और उनकी प्रिय गंगा गोदावरी नदी के रूप में स्थापित हैं।
कहा जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है। मंदिर परिसर में सारा साल धार्मिक अनुष्ठान व पूजा चलती रहती है, काल सर्प दोष, नारायण नागबली पूजा के लिए देशभर से लोग यहां आते हैं। मंदिर के पास में ही कुशावर्त तीर्थस्थल है, जहां गोदावरी बहती है। यहां से 7 कि.मी. की दूरी पर अंजनेरी पर्वत स्थित है, जिसे हनुमान जी की जन्मस्थली माना जाता है। श्री क्षेत्र त्र्यम्बकेश्वर एक महान तीर्थस्थल है, जहां आने वालों के सभी कष्टï भगवान शंकर दूर करते हैं। त्र्यम्बकेश्वर के कण-कण में भगवान शिव और उनसे जुड़ी कथाओं की महक आती है। यहां आकर तन और मन दोनों उल्लास से भर जाते हैं।
एक और बात- श्री क्षेत्र त्र्यम्बकेश्वर नगरी में घुमते हुए मैंने देखा कि वहां बाकायदा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक बार भी चल रहा है. बहुत आश्चर्य हुआ. इस बार के इर्द-गिर्द मैंने उन लोगो को भी झूमते देखा जो कुछ देर पहले मंदिर में शिव कि भक्ति में झूम रहे थे. इतने पौराणिक महत्व कि इस धरा पर सुरा पान का केंद्र स्थापित नहीं होना चाहिए था.
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