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आज 12 जून है. 12 जून यानि बाल श्रम दिवस. इस दिन हमारे देश की मीडिया, ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं को अचानक बाल श्रम की भट्टी में पिस रहे बच्चों की चिंता होने लगती है. बाल श्रमिकों के उत्थान और बालश्रम के उन्मूलन के ऐसे लम्बे-चौड़े वायदे लोगों से किये जाते हैं, जैसे तो ढाबों, रेस्तरां पर काम करने वाले छोटू अगले दिन से ही काम करना बंद कर देंगे, या गली-कूचों में थैली उठाकर कूड़े में अपना भविष्य तलाशने वाला बचपन अब किसी स्कूल की बेंच पर बैठकर अपना भविष्य बनाएगा.
इस मुबारक दिन पर बाल श्रमिकों को कुछ मिले न मिले अपने नेता लोगों की तो चांदी हो जाती है. उन्हें बाल श्रम पर भाषण देने, या फिर किसी अख़बार के फ्रंट पेज पर बाल मजदूरों को फल वितरित करते सशरीर छपने का मौका जो मिल जाता है. यानि बाल श्रमिकों का तो जो होगा, देखा जायेगा. कम से कम अपनी तो पब्लिसिटी हुई. ……….आज सुबह ही पत्नी फलों की एक टोकरी सजाये पड़ोस के बाजार में निकलने को हुई. मैंने पुछा तो बोली-”आज बाल श्रम दिवस है. …..सोचा सामने के मार्केट में इस्त्री करने वाले छोटू को कुछ फल भेंट कर आऊं. ताकि कुछ पुण्य मिले.” घर पर आये दिन किसी भिखारी या फकीर को आधा कटोरी आटा देकर टरकाने वाली श्रीमती जी आज एकदम इतनी त्यागी समाजसेवी कैसे बन गई कि 40 रु किलो के आम और 25 रु किलो के केले वो एक इस्त्री वाले को देने को तैयार हो गई. मुझे बीवी जी की नीयत पर कुछ शक हुआ और मैंने जब फलों की टोकरी चेक की तो पाया कि उन फलों की हालत और अपने देश की सिस्टम की हालत एक जैसी ही है. यानि दोनों सड़े-गले.
मैंने कहा- “ये फल, ये तो कूड़े में फैंकने लायक हैं”………………
वो ममता बनर्जी की तरह मुझ पर भड़की-“तुम्हे तो मेरे हर काम में खोट नजर आता है. जाने कौन सी घड़ी में हमारी शादी हुई थी……….” मेरे लाख कहने के बावजूद वो फल गिफ्ट करने निकल गई. शायद गले-सड़े फलों की एवज में लाखों का “पुण्य” कमाने का लोभ संवरण नहीं कर पाई.
खैर, पत्नी से नोक-झोंक करके बाहर आया, तो देखा की शहर के नेताजी गली में आये हैं. पता चला कि आज बाल श्रम दिवस के मौके पर सामने के स्कूल में एक सेमीनार है, जिसमे वे बतौर मुख्य वक्ता आमंत्रित हैं. यहाँ मैं आपको बता दूं कि पिछले साल नेता जी कि पत्नी ने अपनी कोठी में काम करने वाली दस वर्षीय बच्ची को चोरी के शक में इतनी बेरहमी से पीटा था, कि वो बच्ची आज तक कोमा में है……. बहरहाल स्कूल के हाल में आज काफी रौनक है. सेमिनार शुरू हो चुका है. “बाल श्रम एक अभिशाप है. हमें इसका समूल नाश करना होगा………” नेताजी ओजस्वी भाषण दे रहे है. ………
फिलहाल सेमिनार में लंच ब्रेक हो चुका है. नेताजी के लिए कई लजीज पकवान बने हैं. जो कुशल बाल श्रमिकों ने ही तैयार किये हैं.
….. तभी एक शोर मचा. एक कोने में आयोजक एक बच्चे को जोरों से पीट रहे थे…… क्या हुआ……. नेताजी ने पूछा तो पता चला कि पीटने वाला एक बाल मजदूर है. गर्मी में भूख सहन नहीं हुई तो बने हुए वी आई पी खाने को नेताजी से पहले ही खाने का जुर्म कर बैठा था.
…….”कोई बात नहीं, इससे भगाओ यहाँ से ” नेताजी ने कहा
कुछ देर बाद लजीज खाने पर हाथ साफ़ करने के बाद नेताजी वहां से चल दिए. स्कूल के एक कोने में पिटा हुआ बाल मजदूर पड़ा था. ठीक उसके सामने एक बैनर लगा था, जिस पर लिखा था-“बाल श्रम हटाओ, बचपन बचाओ “
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