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आज सुबह उठकर जैसे ही टीवी ऑन किया. फिर एक बुरी खबर से सामना हुआ. खबर थी- पश्चिम बंगाल में रेल पटरी पर बम ब्लास्ट से 65 लोगो की मौत, अनेक घायल. अभी प्लेन हादसे को हुए 10 दिन भी नहीं हुए थे की फिर एक हादसे की खबर. उफ़ भगवान ये कैसी लीला है तुम्हारी.
बहरहाल हादसे के बाद की जाँच पड़ताल शुरू हो गई है और जैसे की अपने देश में होता आया है, इस घटना के बाद देश के तमाम नेताओं और प्रधानमंत्री ने भी घटना की निंदा करने की परम्परा का निर्वहन कर दिया है. रेल मंत्री ममता बनर्जी ने भी इस घटना को राज्य सरकार का मामला करार देकर अपने मंत्रालय को सेफ कर लिया है. खैर, इस रेल हादसे का जिम्मेदार लाल ब्रिगेड को माना जा रहा है. यह लाल ब्रिगेड वही बेलगाम माओवादी घोड़े हैं, जो कभी दंतेवाडा में सुरक्षा बलों को अपना निशाना बनाते हैं, तो कभी मिदनापुर में नरसंहार की साजिश रचते हैं. लेकिन अजीब राजनीती है हमारे रहनुमाओं की, जो इतने नरसंहारो के बाद भी चुप है. कमल की बात है की मानवता के दुश्मन इन माओवादियों को “भटके हुए लोग ” बताकर उनके अपराध को कम करने की कुचेष्टा की जा रही है. केंद्र सरकार में शामिल कुछ राजनितिक दल माओवादियों को “उपेक्षित ” करार देकर उनके कृत्यों को जायज ठहराने व बातचीत के जरिये उनकी समस्याओं को सुलझाने का राग अलाप रहे हैं.अपनी ही् सरकार के कुछ लोगों द्वारा .माओवादियों का पक्ष लेने से परेशान गृहमंत्री पी चिदम्बरम को ये कहना पड़ा कि माओवादियों से निपटने के लिए उनके पास सीमित अधिकार हैं. अजीब विडंबना है कि एक और तो मनमोहन सरकार अपनी सालगिरह का जश्न मना रही है, तो दूसरी और माओवादी निर्दोषों कि होली खेल कर अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हैं. मंत्रीगण आत्म प्रशंसा में उलझे हुए है, लेकिन आम आदमी के जीवन कि चिंता किसी को नहीं है. अब समय आ गया है कि आतंकी घटनाये, चाहे बाहरी लोग करे या फिर तथाकथित “अपने ” लोग. इनसे सख्ती से निपटा जाये. मानवता और भारत कि प्रभुता से खिलवाड़ करने का हक़ किसी को नहीं है. उम्मीद की जानी चाहिए की इस रेल हादसे के बाद अब हमारी सरकार नींद से जागेगी, और बातचीत, वार्ता, जैसी नौटंकियों की बजाय गृहमंत्रालय ठोस कदम उठाकर देश में छिपे इन “आस्तीन के साँपों ” को नेस्तनाबूद करेगा.
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