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चंद दोहे

पराग
पराग
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नेता और अपराधी का, है कुछ ऐसा मेल.
ज्यों चंदा में चांदनी, ज्यों दीपक में तेल.
ऋषि मुनियों की धरा पर, आ गए अब खलकामी.
कहीं संत रामपाल है, तो कहीं नित्यानंद स्वामी.
दुर्जन ऐश काट रहे , सज्जन हुए वीरान.
गौ माता भूखी मरे, माल खा रहे शवान.
देख राज की मजबूरी, देख वोट का हिसाब.
सरकारी मेहमान बने, अफजल और कसाब
राधा मोहन की कथा, भारत की जनता भूली.
प्रेम पर पहरे लगे, प्रेमी चढ़ रहे सूली.
दाल की कीमत हुई दूनी, जनता बेचारी रोय
महंगाई की चक्की में साबुत बचा न कोय.

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